Monday, March 16, 2015

तोहरे ऋण से कब उऋण हुअब माई

धरती तुँहैं हम सम्हालेन बड़े जतन से,
पूजा तुँहका बड़े तन-मन-धन से॥
तोहरे हरियाली कै तिनका चोराय लिहिस।
मनई कै हवस तुँहका बेचि कै खाय लिहिस।
नदिया कै नीर सब नर्दहा बनि बहि रहा।
सिसकी भरि-भरि गंगातट कहि रहा॥
अब कहाँ अब रही हमरे पबित्रता कै कीमत ।
मनई बदलि गा है, समय लिहिस करवट॥
न सिसकी कै कीमत न बिलाप कै मोल।
भावना का लोह्गे कै बाट रहा तोल॥
अब कहाँ से लाई धानी चुनरिया तोहार।
अब कइसन चुकाई तोहार उधार।।
तोहरे ऋण से कब उऋण हुअब माई॥
कब हमका-सबका सद्बुद्धी आई॥
तोहरे अँगनवा मा बाबा भी खेलिन,पोता भी खेलिन।
खेलिन अँगनवा मा तोहरे चिरई औ सुग्गा।
तोहरे अँगनवा मा तुलसी माई खेलिन
तोहरे अँगनवा मा भाग्य सबकै जागा॥
आज वहै अँगनवा उजाड़ बना है।
त्याग के सामने भोग कै पहाड़ खड़ा है॥
यहि भोग कै सनक मिटावौ  तुँहीं।
मनई का रस्ता दिखावौ तुँही॥
नाही तौ उ आपन नास कै लेये॥
सृष्टी कै पूरा बिनास कै देये॥


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